हर तग़य्युर को इक पड़ाव समझ आख़िरी मत उसे अलाव समझ क़द्र-ओ-क़ीमत जिन्हें समझता है अपनी फ़ितरत के कुछ झुकाओ समझ हर तअ'स्सुब को जो है दिल में छुपा तू तरक़्क़ी में इक रुकाओ समझ कुछ तमन्नाएँ हैं ख़ुदा की देन तू ख़ुदा-दाद इन्हें बहाओ समझ ज़ावियों को मुख़ालिफ़ीन के तो नए पहलू नए सुझाओ समझ जिसे कहते हैं लोग हुस्न-ओ-शबाब गर्दिश-ए-ख़ूँ लहू का ताओ समझ जब तक अरमान हैं जवानी है पीरी अरमानों का सिखाओ समझ मैं हूँ दीवाना फ़र्त-ए-दानिश से कम समझने में तू बचाओ समझ