हर तअल्लुक़ मिटाते हुए ख़ुद से वा'दा निभाते हुए इक बरस हो गया है तुम्हें मेरे दिल को सताते हुए याद है क्या कहोगे मुझे अपनी जानिब बुलाते हुए मेरा किरदार मर जाता है इक कहानी बनाते हुए आ गया हूँ बहुत दूर मैं सुब्ह को शब बताते हुए तुम भी दैर-ओ-हरम में चलो दाग़-ए-दिल को मिटाते हुए