हर तमन्ना दिल से रुख़्सत हो गई अब तो आ जा अब तो ख़ल्वत हो गई वो रिया जिस पर थे ज़ाहिद ता'ना-ज़न पहले आदत फिर इबादत हो गई जी रहा हूँ मौत की उम्मीद में मर ही जाऊँगा जो सेह्हत हो गई लाख झिड़को अब नहीं फिरता है दिल हो गई अब तो मोहब्बत हो गई मन-ए'-शय वाइ'ज़ है वज्ह-ए-हिर्स-ए-शय अब तो मय से और रग़बत हो गई या तो मस्जिद रात-दिन या मय-कदा क्या से क्या अल्लाह हालत हो गई कर चुके रिंदी बस अब 'मज्ज़ूब' तुम एक चुल्लू में ये हालत हो गई