हर तरफ़ मज्मा-ए-आशिक़ाँ है तेरे दम का ये सारा समाँ है इतना मग़रूर क्यूँ बाग़बाँ है ये चमन चार दिन में ख़िज़ाँ है इश्क़ में बे-ख़बर हो गया हूँ किस से पूछूँ मिरा दिल कहाँ है कुछ नहीं सूझती सैर-ए-गुलशन मेरी आँखों से वो गुल निहाँ है ध्यान आठों-पहर है उसी का मैं यहाँ हूँ मिरा दिल वहाँ है सीने पर रख के सोता हूँ उस को उस की तस्वीर आराम-ए-जाँ है आँसू बहने लगे देखते ही ज़ुल्फ़-ए-महबूब है या धुआँ है जान परवाना है उस परी पर शम-ए-सोज़ाँ हर इक उस्तुख़्वाँ है बे-मुरव्वत है वो बेवफ़ा है सारी मेहनत मिरी राएगाँ है क्या तड़पते गुज़रते ही अपने दर्द-ए-दिल में है लब पर फ़ुग़ाँ है हिज्र में क्यूँ नहीं मौत आती हाए क्या दाग़-ए-दिल मरज़-ए-जाँ है ढूँढता हूँ मैं यूसुफ़ को अपने ख़ाक मेरे पस-ए-कारवाँ है जाम-ए-मुल हाथ में वो बग़ल में 'बहर' अपनी ये क़िस्मत कहाँ है