हर तरफ़ सतवत-ए-अर्ज़ंग दिखाई देगी रंग बरसेंगे ज़मीं दंग दिखाई देगी बारिश-ए-ख़ून-ए-शहीदाँ से वो आएगी बहार सारी धरती हमें गुल-रंग दिखाई देगी पर्बतों से निकल आएँगे थिरकते पैकर नग़्मा-ज़न, ख़ामुशी-ए-संग दिखाई देगी राज़ में रह न सकेगी कोई इज़हार की लय इक न इक सूरत-ए-आहंग दिखाई देगी सोच को जुरअत-ए-पर्वाज़ तो मिल लेने दो ये ज़मीं और हमें तंग दिखाई देगी ताज काँटों का सही एक न इक दिन लेकिन आशिक़ी ज़ीनत-ए-औरंग दिखाई देगी जब भी परखेगा कोई प्यार के मेयार 'क़तील' सारी दुनिया मिरे पासंग दिखाई देगी