हर वक़्त मिरे सामने इक जल्वागरी है मैं देख न पाऊँ तो मिरी कम नज़री है मैं आँख झपकता हूँ तो मंज़र नहीं रहता ऐ हुस्न-ए-दिल-आवेज़ अजब मुख़्तसरी है सोचूँ तो यहाँ कुछ भी नहीं देखने क़ाबिल देखूँ तो तिरी दुनिया बड़ी रंग भरी है दुख दर्द यहाँ आएँ तो वापस नहीं जाते ये दिल कोई आसेब-ज़दा बारा-दरी है मैं दश्त में आ कर भी कहाँ चैन से बैठा याँ पर भी वही इश्क़ वही दर-ब-दरी है प्यारे मिरे अल्फ़ाज़ को तो बार-ए-दिगर देख ये शे'र नहीं नौहा-ए-बे-बाल-ओ-परी है ये फ़ैज़ मिला इश्क़ में दरयूज़ा-गरी से सुल्तानी मिरे नक़्श-ए-कफ़-ए-पा पे धरी है 'तहसीन' मज़ामीन-ए-ग़ज़ल और निकालो ये दौर मोहब्बत की मुसीबत से बरी है