हर ज़ुल्म तिरा याद है भूला तो नहीं हूँ ऐ वादा-फ़रामोश मैं तुझ सा तो नहीं हूँ ऐ वक़्त मिटाना मुझे आसान नहीं है इंसाँ हूँ कोई नक़्श-ए-कफ़-ए-पा तो नहीं हूँ चुप-चाप सही मस्लहतन वक़्त के हाथों मजबूर सही वक़्त से हारा तो नहीं हूँ ये दिन तो मुझे उन के तग़ाफ़ुल ने दिखाए मैं गर्दिश-ए-दौराँ तिरा मारा तो नहीं हूँ उन के लिए लड़ जाऊँगा तक़दीर मैं तुझ से हालाँकि कभी तुझ से मैं उलझा तो नहीं हूँ साहिल पे खड़े हो तुम्हें क्या ग़म चले जाना मैं डूब रहा हूँ अभी डूबा तो नहीं हूँ क्यों शोर बपा है ज़रा देखो तो निकल कर मैं उस की गली से अभी गुज़रा तो नहीं हूँ 'मुज़्तर' मुझे क्यों देखता रहता है ज़माना दीवाना सही उन का तमाशा तो नहीं हूँ