हरा शजर न सही ख़ुश्क घास रहने दे ज़मीं के जिस्म पे कोई लिबास रहने दे कहीं न राह में सूरज का क़हर टूट पड़े तू अपनी याद मिरे आस-पास रहने दे बिखर चुके हैं समाअ'त के तल्ख़ शीराज़े अब अपने नरम लबों की मिठास रहने दे वो देख ढह चुकीं वहम-ओ-गुमाँ की दीवारें यक़ीन चीख़ रहा है क़यास रहने दे बड़ा लतीफ़ अँधेरा है रौशनी न जला उरूस-ए-शब को अभी ख़ुश-लिबास रहने दे तसव्वुरात के लम्हों की क़द्र कर प्यारे ज़रा सी देर तो ख़ुद को उदास रहने दे