हरा-भरा था चमन में शजर अकेला था शजर पे बर्ग बहुत थे समर अकेला था बक़ा-ए-नूर फ़लक पर भी हो गई मुश्किल उमड रही थीं घटाएँ क़मर अकेला था यही तो एक तमाशा पस-ए-तमाशा था तमाश-बीं थे बहुत दीदा-वर अकेला था रफ़ाक़तों से ये तन्हाई कम नहीं होती शरीक-ए-बज़्म तो था मैं मगर अकेला था गुनाह-ए-इश्क़ की कैसी सज़ा मिली हम को कि संग-बार ज़्यादा थे सर अकेला था किया था हम ने सफ़र साथ साथ यूँ 'आलम' कि मैं अकेला मिरा हम-सफ़र अकेला था