हरम की राह में सुनते हैं इक बुत-ख़ाना आता है उसी मंज़िल पे शायद दोस्त का काशाना आता है ब-सू-ए-मय-कदा जब भी कोई मस्ताना आता है सुराही झूमती है वज्द में पैमाना आता है ये हालत हो गई अपनी जुनूँ में इन दिनों हमदम वहीं मंज़िल बनाता हूँ जहाँ वीराना आता है न जाने हाल क्या होगा मिरी मजबूर तौबा का मचल जाता है दिल जब सामने पैमाना आता है मचाया शोर ज़ंजीरों ने यकसू हो गए आदा अजब अंदाज़ से ज़ालिम तिरा दीवाना आता है है दिल बेचैन कुछ बद-ज़ौक़ी-ए-अहबाब से वर्ना 'ज़फ़र' मज़मून ले कर बज़्म में शाहाना आता है