हर-गाम पर थे शम्स-ओ-क़मर उस दयार में कितने हसीं थे शाम-ओ-सहर उस दयार में वो बाग़ वो बहार वो दरिया वो सब्ज़ा-ज़ार नश्शों से खेलती थी नज़र उस दयार में आसान था सफ़र कि हर इक राहगुज़र पर मिलते थे साया-दार शजर उस दयार में हर-चंद थी वहाँ भी ख़िज़ाँ की उदास धूप दिल पर नहीं था ग़म का असर उस दयार में महसूस हो रहा था सितारे हैं गर्द-ए-राह हम थे हज़ार ख़ाक-बसर उस दयार में 'जालिब' यहाँ तो बात गरेबाँ तक आ गई रखते थे सिर्फ़ चाक-जिगर उस दयार में