हरीम-ए-नाज़ से आता है बहरा-वर कोई दिल आईना पे लिए नक़्श-ए-फ़िल-हजर कोई हिसार-ए-दर्द की ऊँचाई बढ़ती जाती है ख़ुशी की आँधियाँ आ कर बनाएँ दर कोई पड़ा है यादों के हुजरे में क़ुफ़्ल मुद्दत से हनूज़ देता है दस्तक सी मो'तबर कोई चमकती राह तो नज़रों से है अभी ओझल चराग़-ए-चर्ख़ की मिलती नहीं ख़बर कोई ये शाम डाले हुए तन पे सुरमई चादर गिला करेगी सियह-शब से मुख़्तसर कोई तमाम ख़्वाहिशें ख़ाशाक में हुईं तब्दील घड़ी में शो'ला न कर दे कहीं शरर कोई तिरी ज़बान से लिपटी है चाश्नी-ए-हवस कहाँ से आए तिरी बात में 'असर' कोई