हम तीरगी में शम्अ' जलाए हुए तो हैं हाथों में सुर्ख़ जाम उठाए हुए तो हैं उस जान-ए-अंजुमन के लिए बे-क़रार दिल आँखों में इंतिज़ार सजाए हुए तो हैं मीलाद हो कि मज्लिस-ए-ग़म मुब्तला तिरे आँगन में दल के फ़र्श बिछाए हुए तो हैं हिज़्ब-ए-हरम ने शौक़-ए-जुनूँ को बढ़ा दिया सीने से हम बुतों को लगाए हुए तो हैं दुनिया कहाँ थी पास-ए-विरासत के ज़िम्न में इक दीन था सो उस पे लुटाए हुए तो हैं कब चोबदार पर हों सर-अफ़राज़ देखिए उस शोख़ की निगाह में आए हुए तो हैं