हश्र में और ही आसार नज़र आते हैं मेरे हामी शह-ए-अबरार नज़र आते हैं दिल-ए-बेताब को ये कह के सँभाला शब-ए-ग़म ठहर अब सुब्ह के आसार नज़र आते हैं क़ल्ब-ए-मोमिन की अजब शान है अल्लाह अल्लाह सर झुकाता हूँ तो अनवार नज़र आते हैं शब-ए-असरा न रहा एक भी पर्दा हाइल साफ़ हक़ के उन्हें दीदार नज़र आते हैं दस्त-ए-क़ुदरत ने बनाई है वो सूरत तेरी जिस के कौनैन ख़रीदार नज़र आते हैं छुप नहीं सकते हैं उस पर्दा नशीं के आशिक़ हम ने देखे हैं सर-ए-दार नज़र आते हैं शाफ़े-ए-हश्र शफ़ाअत पे कमर-बस्ता है आज हर सम्त गुनहगार नज़र आते हैं फ़ैज़-ए-साक़ी से है मय-ख़ाना-ए-हस्ती आबाद आज मय-ख़्वार ही मय-ख़्वार नज़र आते हैं अपने बातिन को न देखा कभी ज़ाहिद तू ने हम तो मय-ख़्वार हैं मय-ख़्वार नज़र आते हैं अब्र आते हैं जो फ़ुर्क़त में तिरी ऐ साक़ी सूरत-ए-दीदा-ए-ख़ूँबार नज़र आते हैं ग़ुंचा-ए-दिल जो तिरे हिज्र में अफ़्सुर्दा है बाग़ में फूल मुझे ख़ार नज़र आते हैं मरज़-ए-इश्क़ की हालत कोई हम से पूछे वो तो अच्छे हैं जो बीमार नज़र आते हैं हाथ ख़ाली है मगर दिल तो ग़नी है अपना चश्म-ए-मख़्लूक़ में ज़रदार नज़र आते हैं छूट जाएँगे मुसीबत से अब इंशा-अल्लाह हिज्र में मौत के आसार नज़र आते हैं डगमगाते हैं क़दम राह-ए-वफ़ा में मेरे मरहले इश्क़ के दुश्वार नज़र आते हैं इस क़दर महव रहे हिर्स-ओ-हवा में 'रासिख़' अब तो सूरत से गुनहगार नज़र आते हैं