हँसी में साग़र-ए-ज़र्रीं खनक खनक जाए शबाब उस की सदा का छलक छलक जाए दिल-ओ-नज़र में बसी है वो चाँद सी सूरत वो दिल-कशी है कि बालक हुमक हुमक जाए लिबास में है वो तर्ज़-ए-तपाक-ए-आराइश जो अंग चाहे छुपाना झलक झलक जाए क़दम क़दम तिरी रानाइयों के दर वा हों रविश रविश तिरा आँचल ढलक ढलक जाए नफ़स नफ़स हो सबा की तरह बहार-अंगेज़ उफ़ुक़ उफ़ुक़ गुल-ए-हस्ती महक महक जाए नशात-ए-क़ुर्ब के लम्हों में उस की अंगड़ाई उभर के ख़ाक-ए-बदन से धनक धनक जाए बक़ा के राज़ हैं सब उस पे मुन्कशिफ़ 'अकबर' वो शाख़-ए-सब्ज़ हवा से लचक लचक जाए