हासिल कभी जो उस की मोहब्बत न हो हमें पल-भर की भी हयात में राहत न हो हमें शिकवे जो तुम से हैं वो तवक़्क़ो के साथ हैं उम्मीद गर न हो तो शिकायत न हो हमें जज़्बातियत में तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ तो कर चुके कल अपने फ़ैसले पे नदामत न हो हमें ये और बात है कि लबों से नहीं अयाँ ये तो नहीं कि तुम से मोहब्बत न हो हमें ने'मत की तरह दिल पे लगे हैं तुम्हारे ज़ख़्म काफ़िर कहो जो टीस में राहत न हो हमें कहते नहीं ज़बान से 'अतहर-शकील' हम ये तो नहीं कि ग़म से अज़िय्यत न हो हमें