हसरत न कोई दिल में तमन्ना न यास है बे-बात क्यों न जाने तबीअत उदास है हर शख़्स माँगता है ख़िराज-ए-तअ'ल्लुक़ात जब से हमारे जिस्म पे उम्दा लिबास है कैसे कहूँ कि तुझ से तअल्लुक़ नहीं कोई तू ही नहीं है पास तिरा ग़म तो पास है पहुँची ज़रा सी ठेस कि टूटा बिखर गया दिल क्या है एक काँच का नाज़ुक गिलास है ओझल हुआ नज़र से तो यादों में आ बसा वो दूर कब हुआ है मिरे दिल के पास है शायद हुआ है फिर कहीं शब-ख़ूँ का तज़्किरा 'ज़ाहिद' फिर आज चाँद का चेहरा उदास है