हस्ती है अदम मिरी नज़र में सूझी है ये एक उम्र भर में ओ आँख चुरा के जाने वाले हम भी थे कभी तिरी नज़र में फैलाती है पाँव हसरत-ए-दीद ठंडक जो मिली है चश्म-ए-तर में कोई न हिजाब काम आया देखा तो वो थे मिरी नज़र में कम-ज़र्फ़ थे सारे ग़ुंचा ओ गुल क्या फूले हैं एक मुश्त-ए-ज़र में इतना भी न हो कोई हयादार देखा तो समा गए नज़र में तारे ये नहीं हैं आख़िर-ए-शब कुछ फूल हैं दामन-ए-सहर में है उम्र-ए-रवाँ का शम्अ में रंग घर बैठे गुज़रती है सफ़र में दुनिया है 'जलील' हाथ उठाए बैठे हैं किसी की रहगुज़र में