हस्ती इक नक़्श-ए-इनइकासी है ये हक़ीक़त नहीं क़यासी है ज़ौक़ तिश्ना है रूह प्यासी है सारा माहौल ही सियासी है खुब गई दिल में हर अदा उस की कज-अदाई भी ख़ुश-अदा सी है दिल है अफ़्सुर्दा तो बहार कहाँ बाग़ में हर तरफ़ उदासी है उन को पा कर क़रार आएगा अहल-ए-दिल ये भी ख़ुश-क़यासी है सौ हिजाबों में बे-हिजाब है हुस्न सौ लिबासों में बे-लिबासी है मुद्दआ तक बयाँ नहीं होता बद-हवासी सी बद-हवासी है उन को देखा नहीं 'फ़िगार' मगर उन के जल्वों से रू-शनासी है