हाथ ख़ाली है कोई कंकर उठा आँख से ठहरा हुआ मंज़र उठा ख़ामुशी का तनतना है हर तरफ़ शोर ये कैसा मिरे अंदर उठा क्या नहीं रक्खा था मेरे सामने फिर भी सज्दे से न मेरा सर उठा अब भी माला-माल है मेरा हुनर सामने से मेरे सीम-ओ-ज़र उठा मैं बहुत नादिम हूँ अपने काम से मेरी मिट्टी से नया पैकर उठा मैं भी देखूँ मेरा क़ातिल कौन है ढक न दे मेरा बदन चादर उठा