हाथ में ले के न ख़ंजर बैठिए क़त्ल करना है तो बस कर बैठिए बार दर तक भी नहीं और शौक़ ये बज़्म में उन के बराबर बैठिए उठिए ऐ शोर-ए-फ़ुग़ाँ पर इस तरह नक़्श की मानिंद दिल पर बैठिए हो चुकी ताज़ीम दुश्मन की कहीं ऐ ज़ियारत-गाह-ए-महशर बैठिए ज़ोफ़ तारी हो तो क्यूँ कर लोटिए जान मुज़्तर हो तो क्यूँ कर बैठिए ये कोई दफ़्तर नहीं सुन लीजिए हाल-ए-दिल कहता हूँ दम-भर बैठिए हज़रत-ए-दिल कूचा-ए-क़ातिल का अज़्म रोइएगा सर पकड़ कर बैठिए रोए जंगल में बहुत अब जी में है घर बिठाने के लिए घर बैठिए खींच मारा एक पत्थर बात में उस सनम के पास पत्थर बैठिए ख़ाक छानी इश्क़ में 'सालिक' बहुत पीर-ओ-मुर्शिद कोई दिन घर बैठिए