हाथ से दिल रो के खोना याद है अपनी कश्ती को डुबोना याद है मुँह छुपा कर मुझ को रोना याद है वो ख़जिल हर इक से होना याद है हिज्र में वो जान खोना याद है सुब्ह होना शाम होना याद है मरते मरते हाथ सीने पर रहे दर्द का थम थम के होना याद है क्यूँ जहाँ में आए थे समझे न कुछ उन का हँसना अपना रोना याद है जागना अपना नहीं भोला हूँ मैं और सारे घर का सोना याद है मरते दम दुनिया निहायत तंग थी क़ब्र का वो एक कोना याद है कौन था बालीं पे मस्त-ए-ख़्वाब-ए-नाज़ शम्अ का रुख़्सत वो होना याद है दिल में पानी ने लगा दी आग आज वो हिनाई हाथ धोना याद है कब न था 'जावेद' आहों में असर फेर कर मुँह उन का रोना याद है