हाथ सीने पे मिरे रख के किधर देखते हो इक नज़र दिल से इधर देख लो गर देखते हो है दम-ए-बाज़-पसीं देख लो गर देखते हो आईना मुँह पे मिरे रख के किधर देखते हो ना-तवानी का मिरी मुझ से न पूछो अहवाल हो मुझे देखते या अपनी कमर देखते हो पर-ए-परवाना पड़े हैं शजर-ए-शम्अ के गिर्द बर्ग-रेज़ी-ए-मोहब्बत का समर देखते हो बेद-ए-मजनूँ को हो जब देखते ऐ अहल-ए-नज़र किसी मजनूँ को भी आशुफ़्ता-बसर देखते हो शौक़-ए-दीदार मिरी नाश पे आ कर बोला किस की हो देखते राह और किधर देखते हो लज़्ज़त-ए-नावक-ए-ग़म 'ज़ौक़' से हो पूछते क्या लब पड़े चाटते हैं ज़ख़्म-ए-जिगर देखते हो