हाथ थामे चल पड़ा है क़ाफ़िला उम्मीद का हर गली कूचे में बरपा जश्न जैसे ईद का सुन के आहट दौड़ता है जिस्म में ऐसे लहू देख कर आया हो बालक चाँद जैसे ईद का साँस थामे मुंतज़िर हूँ कम सुख़न के लब हिलें ख़त्म हो ये सिलसिला ख़ामोश इक तम्हीद का मौत से वा'दा निभाना सीख ले तू ज़िंदगी उम्र भर रक्खा है तू ने मुंतज़िर इक दीद का यूँ तअ'ल्लुक़ है हमारी धड़कनों का आप से दिल के सहराओं में बादल हो कोई उम्मीद का पेश-ए-जाँ 'सीमा' का नज़राना हो गर उस को क़ुबूल मुंतज़िर है दिल हमारा आप की ताईद का