हाथों की लकीरों का लिखा काट रहे हैं हम अपने गुनाहों की सज़ा काट रहे हैं मिटती नहीं तारीख़ से कोई भी इबारत तारीख़ लिखेगी कि लिखा काट रहे हैं है आज की फ़स्लों में अदावत ही अदावत क्या बोया था हम ने यहाँ क्या काट रहे हैं हम फूल हैं महकेंगे जिधर जाएँगे लेकिन इस बाग़ में रहने की सज़ा काट रहे हैं गाते थे कभी वो भी मोहब्बत के तराने मौक़ा जो मिला है तो गला काट रहे हैं आसान बनाना है मोहब्बत की डगर को चुन चुन के सो हम लफ़्ज-ए-वफ़ा काट रहे हैं