हाथों में रस्सियाँ हैं पैरों में बेड़ियाँ हैं आँखों में एक जंगल जंगल में सीपियाँ हैं मैं ख़्वाब क्या सुनाऊँ होंटों पे किर्चियाँ हैं शहज़ादियाँ थीं पहले अब सिर्फ़ लड़कियाँ हैं इक एक कर के बुझती हम मोम-बत्तियाँ हैं लिख कर मिटा दी जाएँ हम वो कहानियाँ हैं हम पर भी इक सहीफ़ा हम हव्वा-ज़ादियाँ हैं