हाथों से मेरे छीन कर दिल का मआल ले गई जाने कहाँ कहाँ मुझे गर्दिश-ए-हाल ले गई काम न कोई आ सका लेकिन ये आँख की नमी सिलसिला-ए-ग़ुबार से मुझ को निकाल ले गई मौज-ए-हवस के दोश पर कोह-ए-सियाह तक गया मुझ को हवा-ए-शौक़ फिर ता-बा-ज़वाल ले गई उँगलियाँ तोड़े कोई कर ले ज़बान संग की देखिए सब्क़त-ए-शरफ़ सौत-ए-बिलाल ले गई तेज़ हवा उड़ा चले जिस तरह बर्ग-ए-ज़र्द को उस की हँसी भी अपने साथ मेरा सवाल ले गई सामने बहर-ए-बे-कराँ क़ैदी यक जज़ीरा में फिर भी मैं उस से जा मिला मौज-ए-ख़याल ले गई