हौसला दीद का और ताब-ए-नज़र देखेंगे हुस्न ही हुस्न के हम शम्स-ओ-क़मर देखेंगे देखना पड़ गई मायूस अँधेरों की सहर सोचते थे कि उमीदों की सहर देखेंगे क्या अजब गीत भी बुलबुल का सुनाई दे जाए सेहन-ए-गुलज़ार में इक इक गुल-ए-तर देखेंगे रू-ब-रू उन के कोई बात न हम से होगी अपनी ख़ामोश निगाहों का असर देखेंगे तू अब आए कि न आए ये तुझी पर छोड़ा उम्र भर हम तो तिरी राहगुज़र देखेंगे हम ने मेहनत से लगाए थे सुख़न के पौदे सोचते थे कि कभी उन का समर देखेंगे इब्तिदा ही से है केश अपना फ़क़त तर्क-ए-रूसूम छोड़ कर दैर-ओ-हरम आप का दर देखेंगे अपने आईना-ए-ग़म में ग़म-ए-आफ़ाक़ लिए ग़म-ए-हस्ती को ब-अंदाज़-ए-दिगर देखेंगे ज़िंदगी लाई नज़र में जो हवादिस 'मग़मूम' देखना हम नहीं चाहेंगे मगर देखेंगे