हवस-ए-ख़लवत-ए-ख़ुर्शीद-ओ-निशाँ और सही दूर है सुब्ह तो ये ख़्वाब-ए-गिराँ और सही कुछ शिकस्ता सा है रंगीनी-ओ-निकहत का तिलिस्म यही बेदाद-ए-ख़िज़ाँ है तो ख़िज़ाँ और सही मरहले दानिश-ए-हाज़िर के तो सब ख़त्म हुए इक क़दम जानिब-ए-अक़्लीम-ए-गुमाँ और सही मेरी पलकें भी गिराँ-बार रही हैं ऐ दोस्त अब ये आँसू तिरे दामन पे गिराँ और सही जल्वा-ए-हुस्न-ए-बुताँ से है अगर दिल का ज़ियाँ ऐ ख़ुदा-वंद मिरे दिल का ज़ियाँ और सही सैंकड़ों रुख़ हैं मोहब्बत की कहानी के 'रविश' एक अंदाज़-ए-हदीस-ए-दिगराँ और सही