हवा के दोश पे बादल की मुश्क ख़ाली है By Ghazal << याद यूँ होश गँवा बैठी है दिल पर जो ज़ख़्म हैं वो द... >> हवा के दोश पे बादल की मुश्क ख़ाली है जो सब को बाँटता फिरता था ख़ुद सवाली है किसी को मार के ख़ुश हो रहे हैं दहशत-गर्द कहीं पे शाम-ए-ग़रीबाँ कहीं दिवाली है तुम्हारे सामने कैसे ज़बाँ को जुम्बिश दें तुम्हारे शहर में सच बोलना भी गाली है Share on: