हवा के दोश पे रक़्स-ए-सहाब जैसा था तिरा वजूद हक़ीक़त में ख़्वाब जैसा था दम-ए-विदाअ' समुंदर बिछा रहा था कोई तमाम-शहर ही चश्म-ए-पुर-आब जैसा था मिरी निगाह में रंगों की धूप छाँव सी थी हुजूम-ए-गुल में वो क्या था गुलाब जैसा था हमारी प्यास ने वो भी नज़ारा देख लिया रवाँ-दवाँ कोई दरिया सराब जैसा था झुकी निगाह वो कम कम सुख़न दम-ए-इक़रार वो हर्फ़ हर्फ़ तिरा इंतिख़ाब जैसा था मुझे तो सैर-ए-जहाँ सैर-ए-बाज़गश्त हुई तिरा जहाँ दिल-ए-ख़ाना-ख़राब जैसा था शिकस्ता ख़्वाबों के टुकड़ों को जोड़ते थे हम वो दिन अजीब था रोज़-ए-हिसाब जैसा था हमें बरतने में कुछ एहतियात लाज़िम थी दिलों का हाल शिकस्ता किताब जैसा था मैं 'शाज़' क्या कहूँ क्या रौशनी थी राहों में वो आफ़्ताब न था आफ़्ताब जैसा था