हवा के हाथ में यादों की जब पिचकारियाँ होंगी भड़क उट्ठेंगी जो भी राख में चिंगारियाँ होंगी दर-ओ-दीवार को ही घर नहीं कहते हैं क्या जाऊँ लचकती शाख़-ए-गुल होगी न हँसती क्यारियाँ होंगी मिरे आँगन में बर्ग-ए-ख़ुश्क दालानों में सन्नाटे कुशादा कमरों में दीमक-ज़दा अलमारियाँ होंगी इधर सच बोलने घर से कोई दीवाना निकलेगा उधर मक़्तल में इस्तिक़बाल की तय्यारियाँ होंगी हम अहल-ए-दिल के जो कुछ दिल में है लब पर वही बातें वो अहल-ए-होश हैं उन के यहाँ अय्यारियाँ होंगी हमारा क्या चले जाएँगे हँसते शहर से तेरे हमारे बा'द दीवारों पे ख़ूँ की धारियाँ होंगी सरों से पुर हैं गड्ढे ख़ून का छिड़काव है हर-सू वो आएँ बे-ख़तर राहों में अब हमवारियाँ होंगी मैं शहर आया बड़े ही शौक़ से लेकिन ख़बर क्या थी यहाँ आँखें बिछाए राह में बे-कारियाँ होंगी वो उट्ठा कारवान-ए-सुब्ह की आमद का शोर 'अंजुम' शरीक-ए-बज़्म-ए-शब में कूच की तय्यारियाँ होंगी