हवा के साथ कोई हर्फ़-ए-चश्म-ए-तर जाए मैं ख़ुद न जाऊँ तो उस तक मिरी ख़बर जाए मिरे ख़ुलूस पे क़दग़न लगाइए साहब ये दिल वफ़ा की अज़िय्यत से ही न भर जाए तू संग-साज़ तड़खने से आश्ना ही नहीं तिरी बला से अगर आइना बिखर जाए तो क्या मैं प्यास का मारा पड़ा रहूँ यूँही तो क्या ये अब्र मिरे साथ हाथ कर जाए तो क्या ये ख़्वाब किनारे न लग सकें 'इरशाद' तो क्या ये मौज-ए-तमन्ना-ए-दिल उतर जाए