हवा ने बादल से क्या कहा है कि शहर जंगल बना हुआ है जहाँ मिरी कश्तियाँ नहीं थीं वहाँ भी सैलाब आ गया है उमीद और ख़ौफ़ नाचते हैं वो नाच-घर है मकान क्या है सब उस की बातें घिसी-पिटी हैं मगर वो पैकर नया नया है वो जा चुका है पर उस का चेहरा उसी तरह मेज़ पर सजा है सजीली अलमारियों के पीछे नोकीले शीशों का सिलसिला है जो साए की सम्त जा रहे हैं वो मैं हूँ और एक अज़दहा है कलफ़ के कॉलर पहनने वाला इक आदमी क़त्ल हो रहा है मिरा बदन जिस को चाहता था किसी ने वो ज़हर पी लिया है