हवा से कैसे कहूँ क्या मिला बुझाने से मैं थक गया हूँ दिए पर दिया जलाने से उसे पुकार मिरे दिल कि जिस ने पिछले बरस किया था तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ किसी बहाने से तो सोच ख़ुद कि जो तरकश पे आन बैठा है वो बच सकेगा कहाँ तक तिरे निशाने से गए दिनों की रिफ़ाक़त का ये असर है कि अब नए दिनों में भी लगते हैं हम पुराने से