हवा-ए-शाम न जाने कहाँ से आती है वहाँ गुलाब बहुत हैं जहाँ से आती है ये किस का चेहरा दमकता है मेरी आँखों में ये किस की याद मुझे कहकशाँ से आती है इसी फ़लक से उतरता है ये अँधेरा भी ये रौशनी भी इसी आसमाँ से आती है ये किस ने ख़ाक उड़ा दी है लाला-ज़ारों में ज़मीं पे ऐसी तबाही कहाँ से आती है सदा-ए-गिर्या जिसे एक मैं ही सुनता हूँ हुजूम-ए-शहर तिरे दरमियाँ से आती है