हवा-ओ-हिर्स की दुनिया में दर-ब-दर हुए हम ख़बर जहाँ की रखी ख़ुद से बे-ख़बर हुए हम क़फ़स में थे तो पर-ओ-बाल थे शरीक-ए-मलाल चमन में आए तो महरूम-ए-बाल-ओ-पर हुए हम कनारा-गीर तमाशाइयों से कैसा गिला हर एक मौजा-ए-तूफ़ाँ के हम-सफ़र हुए हम हमारे हौसले की दाद तो अदू ने भी दी चले हैं नावक-ए-दुश्नाम तो सिपर हुए हम वो जिस सफ़र में मुराद-ए-सफ़र यक़ीनी थी उसी सफ़र पे न आमादा-ए-सफ़र हुए हम हमारी मंजिलत-ओ-क़द्र अपने फ़न से है हुनर-शनास हुए हम तो मो'तबर हुए हम हमारे पास है 'मोहसिन' मता-ए-हैरानी वो इंतिज़ार रहा है कि चश्म-ए-दर हुए हम