हवास-ओ-होश से बेगाना होना भी ज़रूरी है कभी इंसान का दीवाना होना भी ज़रूरी है ये आँखें किस लिए फिर और दी हैं देने वाले ने चराग़-ए-हुस्न का परवाना होना भी ज़रूरी है कुछ इस उन्वान से फैले कि मक़्बूल-ए-दो-आलम हो हक़ीक़त के लिए अफ़्साना होना भी ज़रूरी है नहीं बे-कैफ़-ए-सहबा ठीक दुनिया से गुज़र जाना हलाक-ए-गर्दिश-ए-पैमाना होना भी ज़रूरी है बग़ैर उस के जुनूँ की अज़्मतों पर तब्सिरा कैसा 'मुनव्वर' के लिए फ़रज़ाना होना भी ज़रूरी है