हया की इक हसीं चादर अगर तानी नहीं होती तुम्हारी सुब्ह रौशन रात नूरानी नहीं होती उन्हें हरगिज़ नहीं मिलती कभी भी इश्क़ की दौलत वो जिन से ज़िंदगी में दोस्त नादानी नहीं होती हमारी लाज रख ली ज़िंदगी की भूल ने वर्ना हमारी इश्क़ की दुनिया में सुल्तानी नहीं होती दिलों को तोड़ने वालो बढ़ा कर दूरियाँ देखो मोहब्बत फ़ासले रख कर भी बेगानी नहीं होती मोहब्बत किस गली में रक़्स करती किस पे इतराती अगर लैला किसी मजनूँ की दीवानी नहीं होती क़दम तपते हुए सहराओं पे रक्खा है मजनूँ ने तभी तो इश्क़ की दुनिया में वीरानी नहीं होती कहाँ से अकबर-ए-आज़म के गुलशन में बहार आती अगर चुनरी वो जोधाबाई की धानी नहीं होती फ़ुरूई इश्क़ ने 'मक़्सूद' रुस्वा कर दिया होता बुज़ुर्गों की नसीहत तू ने जो मानी नहीं होती