हयात है कि मुसलसल सफ़र का आलम है हर एक साँस में वहशी ग़ज़ाल का रम है जहाँ अज़ल से घटा-टोप ज़ुल्मतें हैं मुहीत वहाँ भी आज फ़रोज़ाँ निगाह-ए-आदम है उन्हीं के ख़ून से दमकेगा कल रुख़-ए-गीती हयात जिन के लिए आज साग़र-ए-सम है उसी की आँच से पिघलेगा ज़िंदगी का जुमूद जो सोज़ आज ब-ज़ाहिर दिलों में कम कम है जहान-ए-सोज़ है मेरे ख़ुनुक तरानों में मैं वो शरार हूँ जिस पर रिदा-ए-शबनम है न जाने जाग उठे 'शाद' कब नसीब-ए-जहाँ बहुत दिनों से मिज़ाज-ए-हयात बरहम है