हयात-ए-उल्फ़त की चाँदनी में मसर्रतों की कमी नहीं है मगर मुक़द्दर को क्या करूँ मैं नज़र वो पहली जो थी नहीं है वो इब्तिदा इश्क़ की थी हम को गिला था जब दर्द-ए-बे-कसी का मगर शबाब-ए-जुनूँ तो देखो शिकायत-ए-बे-रुख़ी नहीं है तिरी मोहब्बत है ज़हर शीरीं तिरी वफ़ाएँ हसीन धोके है लाख दुश्मन अगरचे दुनिया मगर ये तुझ से बुरी नहीं है हज़ारों तूफ़ाँ से इश्क़ खेले हज़ार दिल में हुजूम-ए-ग़म हो मगर फ़रेब-ए-वफ़ा जो खाए वो ज़िंदगी ज़िंदगी नहीं है कमाल-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा के परतव जहाँ-तहाँ जगमगा रहे हैं ये सब फ़रेब-ए-निगाह-ओ-दिल है किसी में कुछ दिलकशी नहीं है वो और होंगे ऐश-ए-दुनिया की आरज़ूओं में मर रहे हैं वो चीज़ मैं क्यों पसंद कर लूँ जो हासिल-ए-बंदगी नहीं है तिरी वफ़ाओं के आसरे पर हद-ए-तसव्वुर से बढ़ गया हूँ मक़ाम ऐसा अब आ गया है तिरी कमी भी कमी नहीं जवान है अब मिरी मोहब्बत शबाब पर हैं मिरी दुआएँ है मौक़ा'-ए-ख़ुद-कुशी तो ऐ 'राज' हिम्मत-ए-ख़ुद-कुशी नहीं है