हाए क्या पुर-फ़रेब साज़िश है शहर का शहर नज़्र-ए-आतिश है जाम-ए-जमशेद ज़ेर-ए-गर्दिश है देखते जाइए नुमाइश है आम ज़ुल्म-ओ-सितम का चर्चा क्यों ख़ास लुत्फ़-ओ-करम की बारिश है पूछती है ज़बान ख़ंजर की क्या अभी ज़िंदगी की ख़्वाहिश है ख़ौफ़-ओ-दहशत के सूने जंगल में सब्र-ओ-हिम्मत की आज़माइश है अक़्ल के दुश्मनों को क्या कहिए इल्म के मख़ज़नों पे बंदिश है क्या अभी साँस ले रहे हो 'ज़फ़र' जी हुज़ूर आप की नवाज़िश है