हिजाब उट्ठे हैं लेकिन वो रू-ब-रू तो नहीं शरीक-ए-इश्क़ कहीं कोई आरज़ू तो नहीं ये ख़ुद-फ़रेबी-ए-एहसास-ए-आरज़ू तो नहीं तिरी तलाश कहीं अपनी जुस्तुजू तो नहीं सुकूत वो भी मुसलसल सुकूत क्या मअनी कहीं यही तिरा अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू तो नहीं उन्हें भी कर दिया बेताब-ए-आरज़ू किस ने मिरी निगाह-ए-मोहब्बत कहीं ये तू तो नहीं कहाँ ये इश्क़ का आलम कहाँ वो हुस्न-ए-तमाम ये सोचता हूँ कि मैं अपने रू-ब-रू तो नहीं निगाह-ए-शौक़ से ग़ाफ़िल समझ न जल्वों को शराब कुछ भी हो बे-गाना-ए-सुबू तो नहीं ख़ुशी से तर्क-ए-मोहब्बत का अहद ले ऐ दोस्त मगर ये देख तिरा दिल लहू लहू तो नहीं न गर्द-ए-राह है रुख़ पर न आँख में आँसू ये जुस्तुजू भी सही उस की जुस्तुजू तो नहीं चमन में रखते हैं काँटे भी इक मक़ाम ऐ दोस्त फ़क़त गुलों से ही गुलशन की आबरू तो नहीं