हिजाब-ए-गंज-ए-मख़्फ़ी में निहाँ थे इलाही हम कहाँ आए कहाँ थे किसी ने भी न देखा हम जहाँ थे बदन थे ख़ल्क़ हम मानिंद-ए-जाँ थे बसान-ए-नाला सर खींचा है बाहर हम अहल-ए-दर्द के दिल में निहाँ थे निकाला करते थे बालों की खालें कभी हम भी ख़्याल-ए-शाइराँ थे रहे रस्ते में क़दमों से चिपट कर मगर हम नक़्श-ए-पा-ए-रफ़्तगाँ थे जब उस कूचे की हासिल थी गदाई ख़ुदावंद-ए-ज़मीन-ओ-आसमान थे हुए ज़ाहिर बसान-ए-नूर-ए-बातिन दिल-ए-अर्बाब दिल में हम निहाँ थे तिरे कूचे में जब चलना पड़ा था बसान-ए-अश्क आँखों से रवाँ थे कुछ ऐसे नश्शा-ए-हस्ती से बहके नहीं जाना कहाँ आए कहाँ थे सरापा दर्द थे मानिंद-ए-दिल हम मरज़ थे पर नसीब-ए-दोस्ताँ थे कहाँ बात उस की उल्फ़त की कहाँ दिल ये दिरहम गंज-ए-मख़्फ़ी में निहाँ थे न दौड़े जुज़ सिवाए कूचा-ए-यार मगर हम भी ख़याल-ए-दोस्ताँ थे न क्यूँ सय्याद वक़्त-ए-मर्ग आता कि हम बाग़-ए-जहाँ में मुर्ग़-ए-जाँ थे न हरगिज़ बज़्म-ए-साक़ी में रुके हम मगर दौर-ए-शराब-ए-अर्ग़वाँ थे हमाइल थे गुलू-ए-दुख़्त-ए-रज़ में के हम दस्त-ए-ख़्याल-ए-मैकशाँ थे रही रातों को अक्सर सैर-ए-अफ़्लाक मगर हम तीर-ए-आह-बे-कसाँ थे कहाँ डाला ख़लल वस्ल-ए-अदुव्वैन गजर ही थे न हम बांग-ए-अज़ाँ थे बहार-ए-बाग़ हस्ती थी हमीं से नज़र से गो ब-रंग-ए-बू निहाँ थे अयाँ ऐसे के हर शय में निहाँ हम निहाँ ऐसे कि हर शय से अयाँ थे न था माशूक़ जिस में ग़ैर-ए-आशिक़ अजब ख़ल्वत थी वो भी हम जहाँ थे उठे हम उठ गया पर्दा दुई का हमारे उस के बस हम दरमियाँ थे चलें ज़ेर-ए-ज़मीं बे बाल-ओ-पर आज कभी हम ताइर-ए-अर्श-आशियाँ थे न शुक्र उस का किया तलवार खा कर'' कि ज़ख़्म अपने दहान-ए-बे ज़बाँ थे कुछ ऐसी थी शब-ए-ग़म की चढ़ाई कि नाले शम्अ'-ए-बज़्म-ए-लामकां थे गए वो दिन के हर-दम ये जिगर दिल लहू बन बन के आँखों से रवाँ थे न रहते थे ठिकाने एक साअ'त कभी हम भी हवास-ए-आशिक़ाँ थे गुलिस्तान-ए-जहाँ में कौन ठहरा जो सर्व आए नज़र सर्व-ए-रवाँ थे ख़ुदा ने उन को पहुँचाया हदफ़ तक ख़दंग-ए-आह तीर-ए-बे-कमाँ थे जो उस महफ़िल में हम जाने भी पाए पिया-पे आँसू आँखों से रवाँ थे न निकली बात मुँह से सूर-ए-शम्अ' ज़बान ऐसी थी गोया बे-ज़बाँ थे मेरे पहलू में कल बैठे थे आसी मगर जब तक थे मिस्ल-ए-दिल तपाँ थे