हिज्र इम्कान होगा बताते हुए रो पड़े हम नज़र को झुकाते हुए उन से वाबस्तगी का है ऐसा असर मर ही जाएँगे उल्फ़त निभाते हुए जीते जी गर नहीं मौत पर ही सही उन का कांधा हो मय्यत उठाते हुए दिल के पन्नों पे कितनी रुबा’ई लिखी अश्क को रौशनाई बनाते हुए 'उम्र सारी 'इनायत' की गुज़रेगी अब नाम उन का ही लिखते मिटाते हुए