हिज्र की रातें कैसे काटें पूछो हिज्र के मारों से पलकों पलकों अश्क सजाए बातें कीं दीवारों से जीवन नय्या जूझ रही है ज़ुल्म के बहते धारों से हम ने क्या क्या दर्द समेटे रोज़ाना अख़बारों से आँगन आँगन फूल खिलेंगे प्यार की ख़ुशबू महकेगी अम्न का परचम हाथों में लें काम न लें तलवारों से नज़म-ए-ज़माना दरहम-ओ-बरहम अब तो ऐसा लगता है राहज़नों का ख़ौफ़ है कम-कम डर है पहरे-दारों से जहद-ओ-अमल का दामन थामें अज़्म का परचम लहराएँ कश्ती पार नहीं लगती है बातों की पतवारों से यारो जिस्म की ख़ुश-पोशी से तज़ईन-ओ-तौक़ीर नहीं दिल को भी तो रौशन कीजे पाकीज़ा अफ़कारों से मेरे वतन की मिट्टी में भी यारो कितनी ख़ूबी है सोंधी सोंधी ख़ुशबू महके बारिश की बौछारों से