हिज्र में हो गया विसाल का क्या ख़्वाब ही बन गया ख़याल का क्या ख़ुद-नुमाई पे ख़ाक डालो तुम देखना शक्ल-ए-बे-मिसाल का क्या तेरी फ़ुर्क़त के दिन ख़ुदा काटे हो रहेगा कभी विसाल का क्या दिल के देने में उज़्र किस को है जान ही दे रहे हैं माल का क्या हाल उस ने हमारा पूछा है पूछना अब हमारे हाल का क्या वस्ल की इल्तिजा पे बिगड़े क्यूँ सुन के चुप हो रहो सवाल का क्या दौर की आशिक़ी गुनाह नहीं देख लेते हैं देख-भाल का क्या ज़ुल्फ़ को क्यूँ जकड़ के बाँधा है उस ने बोसा लिया था गाल का क्या आज तुम क्यूँ मलूल बैठे हो वस्ल दिन है मिरे विसाल का क्या जब कहा तुम से रोज़ मिलता हूँ हँस के कहने लगे ख़याल का क्या क़ौल के वक़्त शर्त-ए-फ़ुर्सत क्यूँ दख़्ल वा'दे में एहतिमाल का क्या रंज दे कर जो ख़ुश हो ऐ 'मुज़्तर' उस को सदमा मिरे मलाल का क्या