हिज्र-ए-पैहम है क्या किया जाए मुस्तक़िल ग़म है क्या किया जाए एक तस्वीर सामने है मगर आँख पुर-नम है क्या किया जाए उस की आदत है देर कर देना ज़िंदगी कम है क्या किया जाए सौंप देता हवा को ख़ाक अपनी पर अभी नम है क्या किया जाए कैसा झगड़ा है मेरे अन्दर ये शोर हर दम है क्या किया जाए मैं हूँ तन्हा और आप के हक़ में एक आलम है क्या किया जाए झूट का और अद्ल का 'हैदर' रब्त-ए-बाहम है क्या किया जाए