हो चुकी अब शाइ'री लफ़्ज़ों का दफ़्तर बाँध लो तंग हो जाए ज़मीं तो अपना बिस्तर बाँध लो दोश पर ईमान की गठरी हो सर हो या न हो पेट ख़ाली हैं तो क्या पेटों पे पत्थर बाँध लो आफ़ियत चाहो तो झुक जाओ सर-ए-पा-पोश-ए-वक़्त फिर ये दस्तार-ए-फ़ज़ीलत अपने सर पर बाँध लो क़ाज़ी-उल-हाजात से इक अहद बाँधा था तो क्या अब फ़क़ीह-ए-शहर से अहद-ए-मुकर्रर बाँध लो आशियानों में छुपे बैठे हैं सब शाहीन-ओ-ज़ाग़ तुम भी 'शाइर' ताइर-ए-तख़्ईल के पर बाँध लो