निकले हम कहाँ से और किधर निकले
हर मोड़ पे चौंकाए ऐसा अपना सफ़र निकले
तु समझाया किया रो-रो के अपनी बात
तेरे हमदर्द भी लेकिन बड़े बे-असर निकले
बरसों करते रहे उनके पैगाम का इंतजार
जब आया वो तो उनके बेवफा होने की खबर निकले
अब संभले के चले 'ज़हर' और सफ़र की सोच
ऐसा ना हो कि फिर से ये जगह उसी का शहर निकले
तु भी रखता इरादे ऊँचे तेरा भी कोई मक़ाम होता
पर तेरी किस्मत की हमेशा हर बात पे मगर निकले।
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